सत्य की खोज


सत्य की खोज

संकल्पना एवं मूल लेखन- हिमांशु वोरा
संपादन एवं पुनर्लेखन- सुमित मेनारिया

(भाग-1)

इस मिथ्या जीवन से उकताकर,
तंग दुनियादारी से आकर।
उठाया मैंने प्यूमा का बैग,
और निकल पड़ा सफ़र पर बाई लेग।।

माता पिता ने मुझको रोका,
दोस्तों ने भी  बहुत टोका।
पर मैं जग के बंधन तोड़ चूका था,
फेसबुक-व्हाट्सएप्प छोड़ चूका था।।

मैं चला था एक दुर्गम राह पर,
दिल से निकली एक अंतिम चाह पर।
चेहरा डूबा हुआ एक स्वर्णिम ओज में,
मैं निकल पड़ा था सत्य की खोज में।।

दिन गुज़रे मैरे सोस और रोटियो में,
अंत में पहुंचा हिमालय की चोटियों में।
हर तरफ बर्फ ही बर्फ पसरी थी,
हमारे पास मात्र एक जेकेट और जर्सी थी।।

तभी दिखा मुझे कुछ चमकता हुआ,
दूर गुफा में एक अलाव जलता हुआ।
पास ही चट्टान पर एक बाबा बैठे थे,
लगता था  बैठे बैठे ही लेटे थे।।

बाबा के मुख पर लालिमा छाई थी,
लगता था अभी अभी रजनीगंधा खाई थी।
किस्मत का दरवाजा अब यही खुलना हैं,
मैं जान गया की  सत्य यही मिलना हैं।।

अग्नि की ज्वाला को तापते हुए,
हमने पुछा थरथर कांपते हुए।
मेरा फटा नसीब जहाँ सिलेगा,
बाबा ये सत्य कहाँ मिलेगा?

।।इति श्री सत्य की खोज प्रथम भाग समाप्तम्।।


(भाग-2)

बाबा अपनी आँखे खोले,
गौर से हमे देखकर बोले।
बेटा किस दुनिया से आये हो?
बड़ा विकट प्रश्न लाये हो।।

हम तो साधु सन्यासी है,
जग से अलग निवासी है, 
हम भी सत्य को खोजने निकले थे,
पर आज तक सत्य के अभिलाषी है।।

मै बोला फिर तेवर मे आकर,
अपनी भोंहे ऊपर चढ़ाकर।
मुझे तो लगा आप बड़े सन्यासी हो,
आप मगर अज्ञानपुर के वासी हो।।

आप मुझे क्या सत्य की राह दिखाओगे,
खुद ही प्यासे कैसे मेरी प्यास बुझाओगे?
आप बस तपस्या कर कर  सड़  जाओगे,
मगर इस सब का क्रेडिट कभी न पाओगे।। 

तब बाबा लाये एक कूल स्माईल,
 और बोले इन अ  दिव्य स्टाइल।
तो चल बेटा! तुम्हे अपना सीक्रेट बताता हूँ,
तुम्हे सत्य की खोज करवाता हूँ।।

एक हाथ चावल,
एक हाथ गंगा नीर धरो।
इधर उधर न झांको,
मेरी हर बात पर धीर धरो।।

जान लो सत्य की राह बड़ी कठिन हैं,
पाओगे सत्य तभी गर खुद पर यकीं हैं।
जम कर बैठो और सिट बेल्ट बांध लो,
एक गहरी साँस लो और फिर साँस थाम लो।।

।।इति श्री सत्य की खोज द्वितीय भाग  समाप्तम्।।

(भाग-3)

चलो बेटा शुरुआत संसद से करते हैं,
देश के बड़े मंदिर में चलते है।
वहां सब सत्य सत्य चिल्लाते हैं,
सब खुद को बड़ा सत्यवादी बतलाते हैं।।

सफ़ेद कुरता, सफ़ेद टोपी लगाते हैं,
सब हमको बड़े  संत मुनि नज़र आते हैं।
देश से जो चुन चुन कर आते हैं,
राष्ट्र सेवा का धर्म निभाते हैं।।

विधि-विधान के वे ज्ञाता हैं,
देश के भाग्य निर्माता हैं।
एक पल भी यहाँ से ने डगता  होगा, 
सत्य संसद में ही बसता  होगा।।

हाजमा की गोली खाके,
हम बोले तनिक तेश में आके।
यहाँ पड़े पड़े जंगियाय गए हो,
बाबा तुम सठियाय गए हो।।

क्या कह रहे हो तुम्हे भान नहीं हैं,
सत्य का तुम्हे कुछ भी ज्ञान नहीं हैं।
यह नेता ही सबसे बड़ा झूठा हैं,
बिन बकरी का खूंटा हैं।।

यह सत्य का सबसे बड़ा दलाल हैं,
संसद में बस झूठ का बवाल हैं।
ये  वो  सर्प हैं जो बिन दांत  के  डस   सकता हैं,
संसद में कभी सत्य नहीं बस सकता हैं।।

।।इति श्री सत्य की खोज तृतीय भाग  समाप्तम्।।

(भाग-4)

बाबा थोडा सा झुंझलाए,
अपनी नादानी पर सर खुजलाये।
हाथ में आ गयी थी एक दो जुए,
बाबा तनिक डिप्रेस से हुए।।

तभी बाबा अचानक काँप गए,
हमको लगा स्वर्ग की सीढ़ी नाप गए।
लेकिन बाबा का मोबाइल बजा था,
व्हाट्सएप्प पर जीएफ का संदेशा था।।

हम थोड़ी देर इधर-उधर ताँके,
फिर बोले फुल एनर्जी में आके।
बाबा  जरा कोई सुगम रास्ता सुझाये,
सत्य की खोज का कोई अल्टिमेट प्लान बताये।।

बाबा तब तक कर रहे थे चैटिँग,
सो 2 मिनट हमको रखा वेटिँग।
उसके बाद बाबा ऑफ लाईन आये,
और वाट्स एप पर "बिजी" का स्टेटस
चढाये।।

बेटा सत्य की खोज नहीं इतनी आसान,
सत्य तो हैं  मलेशिया का लापता  विमान।
सत्य के लिए बड़े जुते घिसवाने पड़ेंगे,
और आगे के लिए मुझे '1001' चढाने पड़ेंगे।।

यह सुन कर हमारा चेहरा उतर गया,
जैसे गर्लफ्रेंड का लवलैटर चूहा कुतर गया।
किन्तु फिर भी हम फायर पर फीट बढ़ा दिए,
और बाबा को एक नारंगी नोट चढ़ा दीये।।


।।इति श्री सत्य की खोज चतुर्थ भाग समाप्तम्।।

(भाग-5)

नोट देख बाबा का मुख दमक गया,
लगा जैसे फेयर & लवली से चमक गया।
फिर बाबा ने नज़र उठा कर देखा हमारा फेस,
खोले अपना मुँह बोलने को कुछ शेष।।

फिर जैसे हुआ इक चमत्कार ,
रेगिस्तान मेँ जैसे आई हो बहार।
जल गये सारे उम्मीदो के बुझे दिये ,
जैसे मुर्दे मेँ किसी ने प्राण फूँक दिये।।

थोडी देर रहे साइलेंट मोड पर फिर बाबा जनरल पर आये,
तब बोले गरजते हुए हवा मेँ अपना हाथ उठाये।
बेटा बहुत हो गया अब छोडो वरी होना,
सत्य मिलेगा तुम्हे, बस भटकना पडेँगा कोना कोना।।

चलो आओ बेटा जरा इक काम करे,
न्यायालय कि तरफ भी अपना ध्यान धरे।
न्यायालय दूध का दूध पानी का पानी करता हैं,
यही सत्य का माता पिता और पालनकर्ता है।।

न्याय की देवी जहाँ हाथ में तराजू लिए खड़ी हैं।
मुझे लगता हैं सत्य की मणि वही पर जड़ी हैं।
यही गंगोत्री हैं जहाँ सत्य जल बहता होगा,
हो न हो सत्य न्यायालय में ही रहता होगा।।

बाबा की बात सुन हम जैसे सन्न रह गए,
लगा की बाबा भाँग के नशे में  ही सब कह गए।
बाबा रहने दो आपसे न हो पायेगा,
सत्य न्यायालय में क्या घंटा मिल जाएगा!!

बाबा होर्लिक्स लिया करो कमज़ोर ब्रेन के लगते हो,
आप पढ़े-लिखे मुझे मगर आईआईएन से लगते हो।
न्यायालय ही हैं जहाँ सत्य फुट फुट कर रोता हैं,
न्यायालय में दूध पानी और पानी दूध होता हैं।।

तुम्हे न्याय की देवी दिखी पर आँख पर पट्टी न दिखी,
सत्य के तराजू को झुकाती नोटो की गड्डी न दिखी।
तुम्हे कोर्ट में अटके केसों का अम्बार न दिखा,
अजीब बात हैं बाबा तुम्हे वहां सत्य शर्मसार न दिखा।।

जहाँ गवाह ख़रीदे और बैचे जाते हो,
जहां फैसले दौलत से सींचे जाते हो।
उस दलदल में सत्य कभी भी धंस सकता हैं,
न्यायालय में  सत्य कभी नहीं बस सकता हैं।।


।।इति श्री सत्य की खोज पञ्चम भाग समाप्तम्।।

(भाग-6)

यह सुन कर बाबा ने निःश्वास ली,
झोले में से निकाल कर थोड़ी चवनप्रास ली।
चवनप्रास खाकर बाबा आँखे मूंद लिए,
हमें लगा की अब झपकी भर नींद लिए।।

लेकिन तभी बाबा अपनी आँखे खोले,
शुन्य में देखते हुए गंभीरता से बोले।
वत्स, अब केवल एक ही चारा बचा हैं,
चलते हैं उसके पास जो सत्य से भी सच्चा हैं।।

अब तेरी नैया प्रभु ही पार लगा सकते हैं,
तेरी शंका के पहाड़ को ईश्वर ही डगा सकते हैं।
बाहर बहूत ढूंढ लिये, अब हम अंदर चलते हैं,
चल बेटा चल, अब हम मंदिर चलते हैं।।

दुनियादारी से दूर जहाँ भक्ति भाव फैला हैं,
कपट की जहाँ छाव नहीं बस प्रभु ही अकेला हैं।
भक्तो का जहाँ हर वक़्त ही लगा रहता मेला हैं,
जहाँ कोई गुरु नहीं, ना कोई चेला हैं।।

ईश्वर परम सत्य हैं जो मंदिर में रहता हैं,
विथ आल प्राउड, मेरा दिल अब कहता हैं।
जहाँ झूठ का नाला दूर से ही बहता होगा,
इस दुनियां में सत्य सिर्फ मंदिर में ही रहता होगा।।

हम बाबा की बात सुन कुछ इम्प्रेस हुए,
लेकिन फिर उतने ही डिप्रेस हुए।
हम भी आँखे बंद किये और एक पल को जांचा, विथ फूल रिग्रेट तब हमने कथन उवाचा।।

काश बाबा! सत्य मंदिर में रहता होता,
तो समंदर खुद हिमालय से बहता होता।
बाबा तब हमें इतनी दूर नहीं आना पड़ता,
आपको भी अपना हेड नहीं खपाना पड़ता।।

आजकल मंदिरो में भगवान कहाँ बसते हैं,
बाहर भूखे सोते हैं, अंदर छप्पन भोग लगते हैं।
वो तो बिक जाते है वीआईपी की टिकट बन कर,
तो कभी दान लेते हैं वो ट्रस्ट वाले बनकर।।

ईश्वर रोज़ सुबह सात बजे  टीवी पर बिकता हैं,
लोगो भगवान सिर्फ चमत्कार में ही दीखता हैं।
भगवान का लिखा बदल देता हैं पंडित 101 लेकर,
तो कोई पास होना चाहता हैं बस नारियल-प्रसाद देकर।।

बाबा मंदिर अब इन पंडो से डूब चुका हैं,
भगवान खुद इन पाखण्डो से ऊब चुका हैं।
इतना सब सहने का साहस कोई भी नहीं रख सकता हैं,
बाबा सत्य मंदिर में भी नहीं बस सकता हैं।।

।।इति श्री सत्य की खोज षष्ठ भाग समाप्तम्।।

(भाग-7)

आसमान में एक स्टार निकल आया था,
मुझे अब तक सत्य का स भी नहीं मिल पाया था।
बाबा ट्राय कर चुके थे अपना बेस्ट,
मेरा टाइम और मनी दोनों हुआ था वेस्ट।।

तभी माहोल में एक अजीब सी दिव्यता आ गयी,
जैसे बर्फ में भी गोधुली छटा छा गयी।
चारो तरफ घंटियाँ ही घंटियाँ बजने लगी,
मेरी सोयी हुई आस्था फिर से जागने लगी।।

लगा बाबा की तपस्या आज रंग लाई हैं,
मेरी सत्य की खोज भी किसी मुकाम पर आई हैं।
मेरी हर प्रॉब्लम पल में हर लेने वाले हैं,
आज भगवान खुद दर्शन देने वाले है।।

हमें क्षितिज पर कुछ परछाइयाँ नज़र आई,
जैसे कैनवास पर कोई ड्राइंग उभर आई।
फिर दिखी हमें कुछ भेड़े आती हुई,
अपने पीछे एक गडरिये को लाती हुई।।

उसे देख हमारी उम्मीदों पर बिसलेरी फिर गयी,
प्रभु-दर्शन की अभिलाषा जैसे छत से गिर गयी।
गड़रिया और भेड़े हमारी और चले आ रहे थे,
जहाँ बाबा और मैं सत्य खंगाल रहे थे।।

तुम दोनों के बीच कौनसा राजमा पक रहा हैं,
ये लौंडा क्यों यहाँ खड़े-खड़े थक रहा हैं?
बाबा इसे कौनसा ज्ञान  पिला रहे हो,
पत्थर पर  कौनसा फूल खिला रहे हो?

ये सून कर बाबा बिफर  गए,
-8° पर भी  बाबा उफन गए गये।
पहले लड़के की दशा को  जाँचे,
फिर फुल  क्रोध में बाबा उवाचे।।

तुम ठहरे  गंवार-गडरिये तुम्हे कुछ भी भान नही,
हमारे महान प्रयोजन का तुम्हे तनिक भी ध्यान नही।
सबके बस की बात नही जो हम सोच रहे हैं,
हम यहाँ खोया हुआ सत्य को खोज रहे हैं।।

हम ढूंढ रहे हैं आकाश और पाताल में,
आज, भविष्य और बीते हुए काल में।
वह जानने की चेष्ठा हैं, जिससे अनजान रहे हैं,
हम सत्य की खोज में  कोना कोना  छान रहे हैं।।

बाबा दर्द भरी अपनी पूरी  व्यथा बताये,
बालक को सत्य की  खोज की कथा सुनाये।
हम बैठे-बैठे दोनों को ताक रहे थे,
कितना समझा हैं बालक यह भांप रहे थे।।

।।इति श्री सत्य की खोज सप्तथ भाग समाप्तम्।।


(भाग-8)

सब  सुन  कर बालक जोर से हँसा,
हमको जैसे किसी विषैले नाग ने डसा।
वो बालक भी बैठ गया रख कर अपना झोला,
फिर हम दोनों को ललकारते हुए बोला।।

मुझे नहीं लगता कि कीच में कमल खिला हैं,
तुम्हे सत्य का अंश मात्र भी मिला हैं।
जाने तुम शाश्वत को क्या खोज रहे हो,
तुम गंजे का सर क्यों नोच रहे हो?

तुम पानी की खोज में मरुस्थल ढूंढ रहे हो,
बगल में छोरा हैं और तुम गाँव घूम रहे हो।
अपनी आँखों पर लगा ज्ञान का चश्मा उतारो,
और सत्य फैला हैं चारो और निहारो।।

क्यों तुमने सत्य को इतनी दूर तक टटोला,
वह बालक मेरी और देख कर बोला।
इतना पढ़-लिख कर भी तुमने कुछ नही सिखा,
अजीब बात हैं तुम्हे सत्य कहीं नहीं दिखा।।

क्या तुम्हे नही दिखी कोई माता शिशु को गोद में सुलाते  हुए,
या कोई कोई पिता बाज़ार से खिलौना लाते हुए।
कोई बहन अपने भाई को गोद में उठाए हुए,
या कोई भाई हाथ पर राखी बन्धवाये हुए।।

नही दिखा कोई पुत्र पिता के चरण के दबाते हुए,
या कोई पत्नी पति का सिर सहलाते हुए।
क्या यह  प्रकृति का महान कृत्य नही था,
तुम ही बताओ क्या यह प्रेम सत्य नही था?

तुम्हे गर्मी में  कोई ठण्डा पानी पिलाते न दिखा,
या सर्द रात में गरीब को कम्बल ओढ़ाते न दिखा।
नही दिखी कोई स्त्री गाय को रोटी खिलाते हुए,
या कोई दानी भूखो को भोजन कराते हुए।।

न देख सके कोई बालक अंधे को सड़क पार कराते हुए,
या कोई अजनबी किसी बूढ़े का सामान उठाते हुए।
क्या मानव होना इन्ही से अमर्त्य न था,
तुम ही  सोचो क्या इन सब में सत्य न था?

तुम्हे भूकंप-बाढ़ में बढ़े हुए हाथ न दिखे,
या आतंकवाद पर सब साथ न दिखे।
एक निर्भया के साथ कैसे सब खड़े थे,
कैसे भ्रष्टाचार के खिलाफ सब लड़े थे?

अजब हैं  कि तुम्हे सीमा पर खड़ा जवान न दिखा,
एक शहीद के पिता का स्वाभिमान न दिखा।
तुम्हारा खोजी ह्रदय इससे तृप्त न था,
मुझे बताओ क्या इनमें सत्य न था?

तुम्ही जानो तुम कैसा सत्य खोज रहे थे?
एक निरर्थक भार से खुद को बोझ रहे थे।
तुम इसी लिए बीच राह  में  झूल गए,
कि तुम सत्य की खोज में सत्य ही भूल गए।।

।।इति श्री सत्य की खोज अष्टम भाग समाप्तम्।।