राष्ट्रगान

बात खड़े होने की नहीं थी, बात सम्मान की थी, तर्क, खड़े न हुए तो क्या सम्मान न हुआ, प्रतितर्क, अगर सम्मान था तो फिर खड़े होने में क्या दिक्कत थी, राष्ट्रगान अंदर था या बाहर था, सही या गलत था, सवाल दूसरा था, तुम हिन्दू थे या मुसलमान थे, दबे थे या बलवान थे, बवाल दूसरा था, अगर आरती होती, तुम खड़े न होते, तो नास्तिक मान माफ़ कर दिया जाता। बात देश की थी देशप्रेम की थी। ईश्वर हैं, नही हैं, तुम मानते हो, नही मानते हो, विवाद हैं। देश हैं, जिसमें तुम रहते हो, देशप्रेम निर्विवाद होना चाहिए।