नास्तिक

नास्तिक-1

"ईश्वर क्या हैं?"
धर्म सभा में जब यह प्रश्न उठा तो सब यूँ देखने लगे मानो किसी ने यौन प्रश्न पूछ लिया हो। "तुम्हारा प्रश्न गलत हैं। प्रश्न यह होना चाहिए कि ईश्वर कौन हैं?" धर्म गुरु ने संभलते हुए प्रतिप्रश्न किया।
"प्रश्न वही हैं ईश्वर क्या है? कोई शक्ति, तत्व, चमत्कार, भाव, विश्वास या मात्र एक दिखावा..."
"ईश्वर एक अनुभूति हैं!""आपको कभी हुई हैं?"
"तो तुम नास्तिक हो?"
"हाँ, बिल्कुल।"

नास्तिक-2

-तो तुम नास्तिक हो?
-हाँ बिल्कुल।
-बेटा ये नास्तिक-वास्तिक कुछ नहीं होता, बस दिमाग की गर्मी हैं। जब मौत सिर पर हो, तुम्हारी साँसे रुकी हुई हो, ज़िन्दगी छिनने वाली हो, तब अच्छे से अच्छा नास्तिक भी भगवान को याद कर ही लेता हैं।
-हाँ! लेकिन तब भी भगवान मदद नहीं करता।
-तुम्हे कैसे मालुम?
- मेरी 'ज़िन्दगी' पहले ही छिनी जा चुकी हैं।

नास्तिक-3
- क्योंकि तुम जिससे प्यार करते हो वो इस दुनिया में नहीं हैं इसलिए तुम ईश्वर के अस्तित्व से इनकार करते हो?
- नहीं, मेरी नास्तिकता एक गहन अध्ययन का परिणाम हैं।
-तो तुम यह कहना चाहते हो पूरी दुनिया जिसमें विश्वास करती हैं वो हैं ही नहीं और पूरी दुनिया मुर्ख हैं।
-यह जरुरी नहीं की पूरी दुनिया जिसमें विश्वास करती हैं वो सत्य हो। 1492 में कोलम्बस ने अमेरिका की खोज की थी उससे पहले पूरी दुनिया यही मानती थी की दुनिया चपटी हैं और अंटलान्टिक महासागर में एक गहरी खाई हैं जिसके आगे कुछ नही है...


नास्तिक-4

-मेरा प्रश्न यह हैं कि ईश्वर के होने या न होने से फर्क क्या पड़ता हैं? ईश्वर केवल एक विश्वास हैं या यूँ कह विश्वास के आश्रीत हैं। आप ईश्वर को मानते हैं अच्छी बात हैं, मैं नहीं मानता, तब भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, तब ईश्वर का महत्त्व ही क्या हैं?
- दिन भर सूरज चमकता हैं, रात को अंधियारा रहता हैं। इंसान दिन में काम करता हैं इंसान रात में भी काम करता हैं, अब अगर तुम कह रहे हो कि रात को सूरज नहीं होता हैं तब भी इंसान तो काम करता ही हैं तो सूरज का क्या महत्त्व हैं? बेटा सूरज होता हैं तभी रात होती हैं...