मुलाकात

मुझे यहाँ की यही बात सबसे अच्छी  लगती हैं, यह हरियाली, यह खुली हवा, यह फूलो की खुशबू. पहले तो मैं यहाँ रोज़ आता था लेकिन फिर…
सामने उसकी बड़ी सी फोटो लग चुकी थी, पहले तो लगा की किसी ने सम्मान में भेंट की होगी लेकिन फिर जब नीचे बड़े बड़े अक्षरों में फर्म का नाम लिखा देखा तो समझ में आया की यह तो एडवरटाइजिंग का एक तरीका मात्र हैं. सीढ़ियो पर पसरी धुल और पत्तियां देख कर एक बार तो हंसी आ गयी.
अन्दर गया तो वो वहीं सामने ही बैठा था  मैंने बिना नज़रे झुकाए नमस्कार  किया और दरवाजे पर ही बैठ गया.
"क्या बात हैं बड़े दिनों बाद आये हो?" उसने मुस्कुराते हुए पूछा.
"बस  ऐसे ही पास से गुज़र रहा था तो मैंने सोचा कि मिलते चलु."
"कोई शिकायत तो नहीं हैं?"
मैं बस मुस्कुरा दिया.
"कुछ चाहिए तुमको?" उसने हँसते हँसते पूछा.
"जो माँगा था वो तो दे दिया तुमने?"
"तुम जानते हो कुछ चीजे किसी के भाग्य में नहीं होती..."
"भाग्य जैसा शब्द कम से कम तुम्हारे मुंह से तो अच्छा नहीं लगता."
"हाँ…तुम चाहो तो ज़िन्दगी भर मुझे इसके लिए कोस सकते हो."
"बाहर कचरा बहुत पड़ा हैं?" मैंने विषय बदलते हुए कहा.
"वे मंगलवार को आयेंगे."
"…और ये इतना बड़ा ताला क्यों लगा रखा हैं?"
"पिछले हफ्ते यहाँ पर चोरी हुई थी…"
"हा हा… तुम्हारे यहाँ पर चोरी!!" मैं ठहाका मार कर हंस पड़ा.
"तो उन्होंने तुम्हे भी नहीं छोड़ा….और तुमने यहाँ भी कुछ नहीं किया "
वो मेरे 'यहाँ भी'   का मतलब अच्छी तरह से जानता था.
"मेरा क्या था… उन्होंने दिया था  वो ही ले गए"
मैंने हँसते हँसते ही मोबाइल देखा.
मैंने वक़्त नहीं देखा था पर ऐसे मौके पर जब हम निकलना चाहते हैं तो ऐसे ही करते हैं.
"ठीक हैं मैं चलता हूँ" मैं कह कर उठ गया.
"हाँ हाँ  आते रहना कभी कभी…तुम जैसे लोग बहुत ही कम आते हैं…"
"....लेकिन नास्तिक मंदिर में ना ही आये तो अच्छा हैं।