मसाणा वैराग

शमशान में बैठा हूँ। दो चिताएं जल रही हैं। अग्रीम पंक्ति में रोते-बिलखते मृतको के परिजन हैं। दूसरी पंक्ति में सांत्वना देने वाले हैं, वो दुखी दिख रहे हैं मगर उनके आंसू नही आ रहे हैं। उसके बाद वाले सिर्फ उदास दिख रहे हैं।
शमशान में बैठा हूँ। दो चिताएं जल रही हैं। अग्रीम पंक्ति में रोते-बिलखते मृतको के परिजन हैं। दूसरी पंक्ति में सांत्वना देने वाले हैं, वो दुखी दिख रहे हैं मगर उनके आंसू नही आ रहे हैं। उसके बाद वाले सिर्फ उदास दिख रहे हैं।
थोडा वक्त बीतने के बाद मानवता अपना असली रंग दिखाने लगती हैं। उदास लोग बोर होने लगते हैं। शांत-चीत लोग तिनके से जमीन पर आकृतियां बनाने लगते हैं, बुढऊ दुनियादारी की बातें करने लगते हैं तो युवा जेब से मोबाइल निकाल लेते हैं।
जो लोग लेट आने के कारण अजनबियों के पास बैठ गए हैं  वो पास वाले से 'गर्मी बहुत हैं' जैसे सार्वभौमिक विषय पर गंभीर मंथन  करते हुए बादलो की स्थिति से वर्षा का पूर्वानुमान कर रहे हैं। मेरे पीछे बैठे दो युवा मोदी जी की वाहवाही और कांग्रेस के भ्रष्टाचार की कड़ी निंदा करते हुए एक्ज़ेंडर से 'उड़ता पंजाब' ट्रान्सफर कर रहे हैं।
नाई करीबी रिश्तेदार को भावी जलन से बचने के लिए सिर में अधिकाधिक पानी लगाने की सलाह दे रहा हैं। एक बुड्ढे काका ट्रेक्टर के अवगुण गिनाते हुए बैलो से खेत जोतने के विशेष लाभ गिना रहे हैं।
और हम... इन सबका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते हुए इस गंभीर प्रश्न में उलझे हैं की दूसरी वाली चिता पहली वाली से तेज क्यों जल रही हैं?

#मसाणा_वैराग
©परमज्ञानी