लिखने से क्या होता हैं?

दोस्त के यहाँ पर नोट्स लेने के लिए गया था. दोस्त अन्दर नोट्स लेने के लिए गया, मैं बाहर खड़ा खड़ा इंतजार कर रहा था, तभी उसके पिताजी हाथ में अख़बार लिए आये. मुझे घूरते हुए देखने लगे. मैंने मुस्कुराकर अभिवादन किया.
"तुम हिमांशु हो न?" उन्होने पूछा.
"हाँ…" मैंने जवाब दिया.
"वो छोटा मुंह वाला पेज तुम ही चलाते हो?"
"जी अंकल" मैंने आश्चर्य, डर और ख़ुशी से मिलाजुला जवाब दिया.
"अच्छा लिखते हो…मगर लिखने से क्या होता हैं?"
"मतलब?"
"केवल लिखने से कुछ नहीं होता बेटा! जब तक हम खुद कुछ न करे."
मुझे अधिकतर लोगो से इसी कमेंट की अपेक्षा होती हैं.
"लेकिन कुछ न करने से तो अच्छा  हैं न की हम कुछ तो अच्छा करे, शायद हम कुछ लोगो की सोच ही बदल दे"  मैंने जवाब दिया.
"नहीं लोग नहीं बदलते हैं, वे केवल अनुकरण करते हैं, सोच का, इन्सान का, अवतार का, भगवान् का… अगर तुम कुछ करते हो वो भी करेंगे. केवल तुम कहोगे वो नहीं सुनेंगे."
"अंकल श्रम के विभाजन के सिद्धांत के बारे में तो सुना होगा?"
"हाँ…"
"यानी समाज में हर व्यक्ति कुछ काम अच्छे से कर सकता हैं, और उसे वही करना चाहिए…हम भी वही कर रहे हैं" मैंने अपना सारा फसबुकियाँ ज्ञान उढ़ेल दिया.
"लेकिन ऐसे तो सब वही करेंगे जो उन्हें पसंद हैं या यूँ कहे वो जो कि आसान हैं..." तभी मेरा दोस्त अन्दर से नोट्स लेकर आ गया.
"ठीक हैं अंकल, चलता हूँ…"  मैं बच कर बाहर निकल गया.
"तेरे पापा तो बहुत कड़वा बोलते हैं यार" मैंने अपने दोस्त से कहा.
"बोलते ही नहीं लिखते भी हैं." उसने   हंस कर कहा.
"मतलब?"
"अखबार में संपादक रह चुके हैं..." उसने जवाब दिया.
मैंने उधर देखा,  अंकल सिर हिलाते हुए अख़बार पढ़ रहे हैं.
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