'किसान'

'किसान' बेटे लुफ़्त उठा रहे हैं बारिश का खेल रहे हैं, अठखेलिया कर रहे हैं, कर रहे जमा उन सफ़ेद मोतियों को जो गिरे हैं आसमान से बरसात के संग... साहूकार गुज़रा हैं अभी-अभी उधर से, अपनी सफ़ेद कार से पानी उछालता हुआ उसके घर पर, वही जिसके पास गिरवी हैं ज़ेवर उसके, और वो कर रही हैं नाकाम कोशिश ढंकने की उस फटे तिरपाल से अनाज को, जानती हैं पेट भरना हैं उसे अपने बच्चों का, वही जो बरसात में खेल रहे हैं।