धर्म रक्षक

धर्म रक्षक
आज वह बार-बार अपने इश्वर को याद कर रही थी. उसका  लड़का जो बाहर दूध लेने गया था अभी तक वापस नहीं आया था और शहर में दंगे शुरू हो गए थे. अपने इश्वर को महान बताने की खातिर  दो प्रजातियाँ आपस में भीड़ चुकी थी.
लेकिन वह तो एक माँ थी, काफी देर तक  करने के बाद भी उसे कोई रास्ता नहीं दिखा तो खुद  अपने बेटे को ढूंढने के लिए बाहर  निकल पड़ी.
रास्ते में धर्म युद्ध के विप्रुद्ध  दृश्य थे. मकान जल रहे थे, लाशें बिखरी पड़ी थी, मौत का सन्नाटा छाया हुआ था. वह  आँखों से आंसू बहाती,  अँधेरे  में छाया कि भांति आगे बढ़ रही थी.  तभी  पीछे से एक आवाज आयी
'रुको!' वह ठिठक कर वही खड़ी हो गयी.
दो योद्धा हाथ में तलवारे लिये  खड़े थे.
"कौन हो तुम हिन्दू या मुस्लिम?" एक ने गरजते हुए पूछा.
''मेरा बे…." उसकी आँखों से आंसुओ की धारा  बहती रही. वह आगे न बोल पायी.
"राम को मानती हो या अल्लाह को, जल्दी बताओ?" दुसरे ने तलवार लहराते हुए पूछा. 
आंसुओ की धारा रुक चुकी थी. भय अब ख़त्म हो चूका था.
"नास्तिक हूँ." उसने धीरे से कहा और पीछे मुड़ कर आगे बड़ गयी.
वे धर्मरक्षक एक परछाई को छोटा होते हुए देख रहे थे.