बेबी डॉल

कुछ समय पहले एक मित्री से मिलने गया था, वो एक गाना गुनगुना रही थी माय नेम इज़ शिला, शिला की जवानी.... मुझे आश्चर्य हुआ मैंने पूछा तुम्हारा नाम शिला कबसे हुआ? और ये जवानी का क्या टोटका हैं? उसने हंसकर कहा, बुद्धू ये तो गाना है... अच्छा!! गाना हैं...
वह मित्री आगे जाकर मुन्नी, बबली, पिंकी और न जाने क्या क्या हुई... पर हर बार उसने यही जवाब दिया कि बस गाना हैं!
कल आप किसी बारात या महिला संगीत में इन्ही गानो पर टाइट जींस में ठुमके लगाती नज़र आएगी। तो क्या हुआ बस गाना हैं...और उस गाने पर एक शालीन नृत्य भी...
और आपका क्या दोष हैं? यह तो एक पुरुष जनित समाज की घटिया सोच हैं, भ्रष्ट मानसिकता हैं और उस मानसिकता से उपजा एक गीत मात्र हैं। आप तो मासूम हैं, आपका गुनगुनाना मासूम हैं, उस गीत को स्वीकारना मासूम हैं उस पर नाचना मासूमियत हैं। आपका कोई दोष नहीं हैं।
तो क्या आप नाचना छोड़ दे या संगीत का चयन फेसबुक पर पोस्ट पढ़ कर करे?
नहीं! आप नाचिये, गाईये, झूमिये... किसी की औकात नहीं की आपको रोक सके...कम से सवा तीन सौ लाइक वाले पेज के किसी संकीर्ण सोच वाले एडमिन की तो बिलकुल नहीं।
लेकिन सोचिये, कि क्या आप यही सब हैं?
एक सोने की बेबी डोल, एक कम अक्ल वाली औरत, जो किसी घटिया perfum लगाने वाले आदमी पर मरी जाती है, जिसका मन किसी 45000 वाली बाइक की बेकसिट पर लगा हुआ हैं, जो मर्दों के शेविंग क्रीम से लेकर कंडोम के पैकेट तक पर बिछी मिलती है, जिसे हीरो 'बडे आराम से से' विलेन से बचाता हैं और वो लिपटी जाती हैं।
लेकिन क्या करे? आपका दोष नहीं है आप तो मासूम हैं, नादान हैं।  पुरुष शासित समाज से दबी हुई हैं, डरी हुई हैं।
नहीं! माफ़ कीजियेगा आप(और शायद मैं भी) गलत हैं। आप ऐसी नहीं हैं। आप शक्ति हैं वह 'ई' जिसके बिना 'शिव' भी मात्र 'शव' हैं। आपको किसी की बहन, माँ, बेटी, या पत्नी होने की आवश्यकता नहीं हैं, किसी पुरुषवादी संबोधन की आवश्यकता नहीं हैं। आप 49% हैं, जो केवल वोट डालने मात्र नहीं हैं। बाकी 51% आप पर आश्रित हैं।
सम्भलिये और अपना वजूद पहचानिए...और यह मात्र आप कर सकती हैं आपका पति, बेटा, पिता या प्रेमी नहीं। आप कोई कोई बेबी डोल नहीं हैं...क्योंकि भले ही यह सोने की हो....खेलने के ही काम आती हैं।