मधुलिका
(By- Sumit Ramesh Menaria)
किट-पतंगों की मधुर लय से ध्वनिमान आरण्य की निजता को भंग करते हुए हुए दो अश्वो से जुड़ा रथ द्रुत गति से अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर था। रथ पर सवार उस स्त्री और उसका सञ्चालन करते उस पुरुष के अतिरिक्त सम्पूर्ण वन में अन्य कोई मानव होगा ऐसा प्रतीत नहीं होता हैं। कांच के पात्र में बंद जुगनुओ की रौशनी से उस स्त्री का मुख पूर्णिमा के चंद्रमा की भांति चमक रहा था। उसके अधर किसी अधखिले गुलाब की पंखुड़ी से थे तो आँखे किसी ठहरी झील की भाँती गहरी थी। उसके काले केश रेशम से लगते थे तो तन किसी मूर्तिकार के जीवन भर के प्रयत्न कर गढ़ी गई श्रेष्ठ मूर्ति सा था जिस पर बेशकीमती पहनावें से यह कहीं की राजकुमारी प्रतीत होती हैं। वहीँ पुरुष साधारण पहनावे में एक बलिष्ठ देह का धनी था जिसके मुख से यौवन की आभा झलकती थी मगर दरिद्रता के अंधकार ने उसका तेज कुछ कम कर रखा था। उसके ह्रदय में उठता भावनाओ का आवेग जंगल में बहती उग्र हवाओ के साथ साम्य बिठा रहा था। उसके मन और इस वन के भीतर इस समय एक सामान तूफान चल रहा था। नभ में चन्द्रमा को छिपाते काले मेघ राजकुमारी के चिंतित ह्रदय की अवस्था का वर्णन कर रहे थे जो एक ऐसे निरर्थक अंतर्द्वन्द्व में उलझा था जिसका निर्णय पूर्व में ही हो चुका था।
‘अभी कितना समय और लगेगा माधव?’ राजकुमारी ने अपने हृदय के अंतर्द्वन्द्व से ध्यान भटकाने हेतु एक ऐसा प्रश्न पूछा जिसका उत्तर उन्हें स्वयं ज्ञात था।
‘भोर तक पहुँच जायेंगे राजकुमारी’, माधव ने नक्षत्रो की और देखकर समय का अनुमान लगाते हुए कहा। ’आप चिंता न करे राजकुमारी! मैं आपको सकुशल राजकुमार तक पहुँचा दूँगा।’ माधव ने लगाम खींचकर अश्वो की गति बढ़ाते हुए कहा।
‘हमें तुम्हारी चिंता हो रही हैं। अगर महल में किसी को पता चल गया की राजकुमारी गायब हैं एवं रथ एवं सारथि भी अनुपस्थित हैं तो तुम्हारा पुनः नगर में अपने घर जाना असंभव हो जाएगा।’ राजकुमारी ने चिंतित होकर कहा तो उनकी भृकुटी पर जल में कंकर डालने पर उत्पन्न तरंगों की भांति बल पड़ गए। ’आप मेरी चिंता न करे राजकुमारी, मैं अन्य नगर में भी रह लूँगा, आपने अपनी सेवा का अवसर दिया मेरे लिए यहीं सौभाग्य की बात हैं।’ कहते हुए माधव का सीना गर्व से तन गया। कौशल की राजकुमारी मधुलिका ने शत्रु राज्य मगध के राजकुमार प्रद्युम्न के संग भागने की गुप्त योजना में...
sumit menaria
Posted on November 22nd, 2016
प्रिय कुल ड्यूडो,तुम्हारा थोबड़ा इतना खूबसूरत हैं कि कामदेव भी शरमा जाए। तुम्हारी स्टाइल के आगे माइकल जैक्सन की आत्मा भी दण्डवत हो जाए। रोड़ के बीच में चश्मा रख कर फोटो खींचने की तुम्हारी चित्रखिंचन कला के आगे तो नेशनल जियोग्राफी के फोटोग्राफर भी अपना कैमरा फेंक दे। तुम मुझसे इतना प्यार करते हो की मुझसे 1500 किमी दूर होकर फोटो खींचते वक्त भी मु...
sumit menaria
Posted on July 5th, 2016
कल डॉक्टर्स डे भी था और सीए डे भी...लोग पूछ रहे हैं कि डॉक्टर्स के ऊपर इतने जोक बनायें गए तो सीए के ऊपर क्यों नहीं? तो भाइयों जो खुद एक जोक हो उसके ऊपर भला कोई क्या जोक बनाएगा? नहीं भाई उनकी बात नहीं कर रहा हूँ जो पास हो गए हैं, क्योंकि चार बार डेटोल से हाथ धोने के बाद हाथ पर जितने प्रतिशत कीटाणु बचते हैं उतने तो बच्चे सीए में पास होते हैं बाकि सब तो बिन...
sumit menaria
Posted on July 2nd, 2016
शमशान में बैठा हूँ। दो चिताएं जल रही हैं। अग्रीम पंक्ति में रोते-बिलखते मृतको के परिजन हैं। दूसरी पंक्ति में सांत्वना देने वाले हैं, वो दुखी दिख रहे हैं मगर उनके आंसू नही आ रहे हैं। उसके बाद वाले सिर्फ उदास दिख रहे हैं।
शमशान में बैठा हूँ। दो चिताएं जल रही हैं। अग्रीम पंक्ति में रोते-बिलखते मृतको के परिजन हैं। दूसरी पंक्ति में सांत्वना देने व...
sumit menaria
Posted on June 19th, 2016
बात सन् 2002 की हैं सलमान खान का ड्राईवर आधी रात को अपनी लैंड क्रूज़र के ऊपर कार लाद कर लॉन्ग ड्राइव पर निकला था। लैंड क्रूज़र के मना करने के बावजूद कार ने बहुत ज्यादा पी ली थी। तभी ड्राईवर ने देखा कि कुछ लोग सड़क के बीचों-बीच सो रहे हैं। देश की यह दुर्दशा देख लैंड क्रूज़र का टायर गम के मारे फट पड़ा। ड्राईवर ने समझदारी दिखाते हुए क्रूज़र फूटपाथ की तरफ मोड़ दीð...
sumit menaria
Posted on January 15th, 2016
शीत अपने चरम पर थी। पशु-पक्षी ठिठुरते हुए अपने बसेरो में जा दुबके थे। सूरज शनैः-शनैः अन्धकार की चादर ओढ़ कर पहाड़ की ओट में छुप चुका था। नीम के पेड़ के नीचे जलते अलाव के निकट खाट पर बैठा एक प्रौढ़ कम्बल ओढ़े हुक्के पी रहा था। तीखी मूंछें, सुदृढ़ भृकुटी, सिर पर लाल पगड़ी और कम्बल से झाँक रहा गले का चाँदी मिश्रित पीतल का गलाबन्द व्यक्ति के रौब का गुण...
sumit menaria
Posted on January 13th, 2016
बात खड़े होने की नहीं थी,
बात सम्मान की थी,
तर्क, खड़े न हुए तो क्या सम्मान न हुआ,
प्रतितर्क, अगर सम्मान था तो फिर खड़े होने में क्या दिक्कत थी,
राष्ट्रगान अंदर था या बाहर था, सही या गलत था, सवाल दूसरा था,
तुम हिन्दू थे या मुसलमान थे, दबे थे या बलवान थे, बवाल दूसरा था,
अगर आरती होती, तुम खड़े न होते, तो नास्तिक मान माफ़ कर दिया जाता।
बात देश की थी देशप्रेम की थी।
ईश्वर हैं, नही हैं, तुम मानते हो, नही मानते हो, विवाद हैं।
देश हैं, जिसमें तुम रहते हो, देशप्रेम निर्विवाद होना चाहिए।
sumit menaria
Posted on December 2nd, 2015
दोस्तों पाणत आ चुकी हैं। सभी ग्रामीणजन खेत की पाणत करने में व्यस्त हैं। इस मौके पर प्रस्तुत हैं पाणत से जुडी कुछ कहावते और मुहावरे-
1) खेत की पाणत में हाथ तो आले होते ही हैं
2)जिनके खेत पर कुँए होते हैं वो नेर से पाणत नहीं करते
3)पाणत नी आवे धोरो डोड़ो
4)धोरो मोटो ने पाणी ओछो
5)अपना धोरा सीधा करना
6)ओढ़े का जवाब नहर बंद करके देना
7)कुँए को धोरा दिखाना (सूरज को दीपक दिखाना)
8)उल्टा धोरा बहाना (उल्टी गंगा बहाना)
9)धोरे में भाटे झोंकना(आँख में धूल झोंकना)
10)जिस धोरे से पाणत करना उसी धोरे में छेद करना
11)नेर में हाथ डाला हैं तो फिर ठण्ड से क्या डरना
12)धोरे धोरे पर पाणत करना (घाट घाट का पानी पि पीना)
13)धोरे धोरे पर लिखा हैं पिलाने वाले का नाम
14)धोरा फुट पड़ना (पहाड़ टूट पड़ना)
15)अपना खेत अलग से पिलाना (अपनी खिचड़ी अलग पकाना)
sumit menaria
Posted on December 2nd, 2015
नगर सवांदाता, रूंडेड़ा। यहाँ रूंडेड़ा गाँव में जीमण में पतली दाल परोसने की वजह से हंगामा हो गया। भोपाओ ने असहिष्णुता का आरोप लगाते हुए मोदी जी से इस्तीफे की मांग की हैं।हमारे नगर सवांदाता परता बा ने बताया की गाँव में लादू बा के कुँए पर प्रतिवर्ष की भांति भोपे जिमाये जा रहे थे। दाल परोसे जाते वक़्त भोपा रामा बा ने 'भाया थोड़ी काटी दाळ गाल जे' कह कर ...
sumit menaria
Posted on November 29th, 2015
एक बार एक बन्दर था। वो गाँव-गाँव घूम कर टोपीयाँ बेचता था। एक बार किसी गाँव में टोपी बेचने जा रहा था। गर्मी की दोपहर थी, थकान आ गयी। एक घनी छाँव वाला पेड़ दिखा तो सोचा कुछ देर सुस्ता लूँ। बन्दर टोपियों की गठरी पास में रखकर सो गया।
जब नींद खुली तो देखा कि गठरी गायब हैं। बन्दर की हालात खस्ता हो गयी, अब क्या करे? ढूंढते-ढूंढते कुछ आगे गया तो देखा कि एक इंसान टोपियों की गठरी काँधे पर लादे चला जा रहा हैं। बन्दर को बाप-दादाओ वाली कहानी याद थी लेकिन क्या करता?यहाँ तो परिस्थिति उल्टी थी। वो एक बन्दर था और सामने दुनिया का सबसे बुद्धिमान और चालाक जीव था। तभी बन्दर ने देखा कि इंसान के कुर्ते की अगली जेब में एक पेन रखा हुआ हैं। बन्दर समझ गया कि यह एक 'बुद्धिजीवी' हैं। उसके दिमाग में एक आईडिया चमका।
"नमस्ते लेखक जी! क्या हालचाल हैं?" बन्दर ने कहा।
"बस बढ़िया आप सुनाइए?" बुद्धिजीवी बोला।
"आपको नहीं लगता की देश में असहिष्णुता बढ़ गयी।"
और फिर बुद्धिजीवी फुट पड़ा। उसने रोते-रोते देश में बढ़ती असहिष्णुता पर एक घंटे का भाषण दे दिया।
"हम्म! तो आपको भी देश में बढती असहिष्णुता के विरोध में कुछ लौटा देना चाहिए। " अंत में बन्दर बोला।
"मेरे पास क्या हैं लौटाने लायक?"
"ये जो सम्मान में आपको इतनी सारी टोपियाँ मिली हैं क्यों न आप मुझे लौटा?"
ये बात बुद्धिजीवी को जम गयी उसने गठरी बन्दर को लौटा दी। बन्दर ने गठरी सिर पर रखी और चलता बना।
sumit menaria
Posted on November 29th, 2015